स्वास्थ्य साधना

एक मात्र रोगों का कारण , तन-मन भरी बुराई।
सर्वश्रेष्ठ उपचार जगत में , जड़ से करें सफाई।

आज प्रतिदिन नई-नई औषधियों के आविष्कार होते रहते हैं । फिर भी रोगों की संख्या घटने के बजाये बढ़ती जा रही है।  रोगों पर नियंत्रण करने के लिए जैसे-जैसे डॉक्टरों एवं चिकित्सालयों में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे रोगों में भी बढ़ोतरी हो रही है।  प्रत्येक वर्ष रोगों के कारण अनगिनत लोग दवाईयां खाते हुए अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं।  इससे सिद्ध होता है की औषधियां दुखी मानवजाति को स्वस्थ रखने में असफल हुई है।

 अगर सच्चा स्वास्थ्य  दवाईयों से मिलता तो कोई भी डॉक्टर, केमिस्ट, वैद्य या उनके परिवार का कोई व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता। अतः स्वास्थ्य  इंजेक्शन, यंत्रों, चिकित्सालयों के विशाल भवनों और डॉक्टरों की डिग्रीयों से नहीं मिलता वरन ‘ स्वास्थ्य साधना ‘ से प्राप्त  है।

 समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन द्वारा स्वास्थ्य साधना  की जा सकती है।  शारीरिक , मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति का भी प्रयास करना चाहिए। ‘स्वास्थ्य साधना’ आज की अनिवार्य आवश्यकता है।  संयमी जीवन और स्वास्थ्य के नियमो का पालन करना स्वास्थ्य साधना कहलाती है। स्वास्थ्य  का श्रोत हमारे भीतर ही है और यही आनंद है। वहीं अज्ञान सभी रोगों की जड़ है और यही दुःख है।  हमारे भीतर उपस्थित जीवन शक्ति हमारे स्वास्थ्य का मूल कारण हैं। इसकी जानकारी (ज्ञान) न होना  ही दुःख और रोग का कारण है । यदि हमारी  जीवनी शक्ति ठीक है तो हम रोगमुक्त रह सकते हैं।  यदि दुर्बल है तो रोगों का आक्रमण होता है और जीवनी शक्ति समाप्त होने पर मृत्यु आ जाती है। स्वस्थ्य साधना के साधन निम्नलिखित  हैं :

१. शारीरिक श्रम का अभ्यास :

प्रातः भ्रमण खेल कूद , तैराकी योगाभ्यास आदि हमारे शरीर को दृढ़ और मजबूत बनाते हैं इनका प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए

२. गलत खान -पान  से बचें :

हमें अपने शरीर के प्रकृति के अनुसार खाना चाहिए।  वात -पित्त-कफ हमारे शरीर की प्रकृति का निर्धारण करते हैं। इनमे संतुलन बना रहे ऐसा भोजन करना चाहिए। स्वाद लोलुप नहीं होना चाहिए।

३ दृढ़ विश्वास का आश्रय :
सकारात्मक विचारों से स्वयं को पोषित करना चाहिए स्वयं से बातें करना चाहिए और स्वयं से बार बार कहना चाहिये :

१.मैं स्वस्थ हूँ।  

२.मैं खुश हूँ।

३.मैं सुन्दर हूँ।

४. प्रार्थना का नियम :
रोज प्रार्थना का नियम होने से मन की शांति बानी रहती है। आत्मिक बल बढ़ता है और दुखों से छुटकारा मिलने में मदद मिलती है।